Monday, April 27, 2009

नारी तू खुद ही अपने जंजाल से निकलना नही चाहती

आज मेरी नौकरानी शीला दो दिन बाद काम पर आई थी.मैं उससॆ नाराज थी कि बताए बगैर छुटी की .डाँटा तो वह रोने लगी और अपनी चोटॆ दिखाने लगी.
पूरे शरीर पर निशान थे .बडा दु;ख हुआ देख.कर .... रात से खाना भी नही खाया था चाय के साथ कुछ खाने को दिया.फिर पूछा क्यो उसॆ पॅति ने मारा .वह उसकी सारी कमाई अपने पास रखना चाह्ता है कुछ पैसे इसने अपने पास रखने चाहे तो मारना शुरु कर दिया ,दो बच्चो और सास के सामने ही मारना शुरु कर दिया .दस साल का लडक़ा और सात साल की लडक़ी खडॆ देखते रहे बचाने को चले तो उन्हेँ भी फेक़ क़र मारा .सास खडी देखती रही .उसके कपडॆ भी फाड दिये उन सबके सामने.... फिर भी गरीबी देखिये पडॉसिय़ॉ से साडी मांग कर काम पर आई.रो रोकर अपनी कहानी सुनाने लगी .13 साल की उमर मे उसॅक़ॆ पिता ने उसकी माँ सॆ पूछे बगैर शराब के नशे मेँ शादी पक्की कर दी .पति का रवैया देख.कर वह चकित रह गई.शारीरिक सम्बन्ध के अलावा उसे शीला से कोई मतलब नहीँ था .पहली लडक़ी हुई तो सास ने नहलाते हुए गला दबा दिया कि बच्ची मरी हुई पैदा हुई है जबकि इसने अपनी आखोँ सॆ उसॆ आँखेँ खोलते हुए देखा.इसके बाद वह माँ क़ॆ पास चली गई इस दौरान बहुत कम अपनी ससुराल आई .माँ ने ही उसे सहारा दिया.दो बच्चे हो गये...पति शहर मे क़ाम करने आ गया तो इसे साथ ले आया .उसके अनुसार वह सुधर गया है . इसको काम करने की आज्ञा दी है...घर का काम भी करवा देता है लेकिन उसकी कमाई का पूरा हिस्सा अपने पास रखता है तो क्या हुआ हर दूसरे महीने उसकी मार..पिटाई करता है और वह भी इतनी कि पडॉसिय़ॉ को छुड्वाना पडता है .पिछ्ले महीने उसकी माँ भी मर गई जो कि उसका एक़्मात्र सहारा थी. जाते जाते वह उसके लिये एक़ छोटा सा मकान बना गई कि मुसिबत मेँ वह उसके काम आ जाये .शायद माँ क़ॉ कही न कही मन मेँ शंका ठीक कि यह आदमी नही सुधरेगा .रिश्तो क़ी बात देखिये कि बडा भाई इस फैसले से नाराज हो गया .कारण ..लडक़ी का शादी के बाद जायदाद् मे कोई हिस्सा नही होता .उसने बहिन से नाता खतम कर लिया .एक़ सकून जरूर उसे मिला कि छोटॆ भाई ने कुछ एतराज नही जताया .25 साल की उमर मेँ ही शीला ने इतना कुछ देख.लिया कि लगता है कुछ बचा ही नही .हमारे समाज मे लडका लडकी मे फरक क्यो?? .एक़ ही पेट सॆ पैदा हुए बच्चे है माँ क़ॉ क़्योँ हक़ नही है कि वह अपनी कमाई चाहे किसी भी बच्चे को दे .उसी घर मेँ पैदा हुई लडक़ी शादी के बाद इतनी पराई हो जाती है कि वह अपनी ही माँ सॆ क़ुछ मांग़ भी नही सकती है .और शादी कर के आयी नई बहू सारे घर की मालकिन हो जाती है .संसार का यह नियम समझ मेँ नही आया.मेरे ख्याल से तो हर माँ..बाप को अधिकार है कि चाहे बेटा हो या बेटी जिसको मरजी अपनी जायदाद/गहने/देँ उनको अपने बच्चोँ क़ॆ दुख..सुख मे साथ देने का पूरा हक़ है .लेकिन इतना सब होने के बाद भी आखिर मे शीला ने मुझसे जो सवाल पूछा तो मै भी हैरान रह गई ....मैडम क्या मेरा बेटा बडा हो कर मेरा ख्याल रखेगा कितनी अजीब बात है अब भी वह अपनी आशायेँ अपनी बेटी से नही लगा रही है जब कि पूरी जिन्दगी एक़ औरत [उसकी माँ] ने ही उसका साथ दिया दिमाग की इस सोच को आप क्या नाम देँग़ॆ ......मेरी सोच ...नारी तू खुद ही अपने जंजाल से निकलना नही चाहती .

Tuesday, April 21, 2009

ज़िन्दगी का एक और नया फलसफ़ा

आज 16 अप्रैल को मैँ .अपनी दोस्त रीना .के साथ.रैकी सीखने के लिये र्रैकी मास्टर के पास गयी. पहले तो ऐसा लगा कि चलो देखते हैँ यह विधा है क्या और कैसे बिना दवाइयोँ क़ॆ क़िसी भी व्यक्ति को आराम पहुँचाया जा सकता है .मास्टर रैकी के बारे मेँ समझाती गयीँ विश्वास करना मुश्किल लग रहा था .जब उन्हौँने कहा कि हम उस पावर के दूत हैँ ज़ॉ हम कर रहे हैँ उनकी अनुमति से कर रहे हैँ हील करने वाले वही हैँ .सुप्रीम पावर वही हैँ . रैकी लेने के बाद मुझे समझ आ गया कि इस विद्या को मैँ अपने आसपास के जीवन मेँ प्रयोग कर सकती हूँ .परिवार मे किसी भी सदस्य को वक्त आने पर रेकी द्वारा मदद कर सकती हूँ....ऎन जी ओ मे दूसरोँ को भी आराम पहुँचा सकती हूँ .नशा मुक्त होने आये लोगोँ क़ॉ हील कर सकती हूँ क़्योँक़ि ज़ॅब वॆ नशा नही करते तो शरीर मे बदलाव आते हैँ उस वॅक़्त रैकी उन्हेँ आत्मिक व शारीरिक दोनो तरह से आराम पहुँचाती है .
इस तरह से आज मैनेँ ऎक नई राह की खोज की .जिन्दगी के फलसफोँ मेँ एक नया फलसफा जुडा..नई राहेँ खोजने चली थी,, एक राह तो मिली कहाँ तक इस पर चल पाऊँगी यह तो ऊपर वाला ही जाने. परिवार के संकुचित दायरे से निकल कर अब औरोँ का भी ख्याल आता है .एन जी ओ मे जा कर मैँ सॉच भी नही सकती थी वे मुशिकलेँ दिखती हैँ .जैसे मैँ कमरे मेँ बैठी थी एक आदमी आया ;एक प्लासटिक़ का थैला रख कर बोला यह औरत मेरे काम की नही है क्योँक़ि इसॅक़ॆ पॆट मे क़िसी और का बच्चा है .मेरे पास बैठे आदमी ने शादी कराई थी सुनने वाला मुझे परेशान लगा पूछा क्या बात है उसने कहा मैडम यह झूठ बोल रहा है .मैने उसे समझाने की कोशिश की कि शादी करके ऐसे कैसे आप एक पत्नी को छोड सकते हैँ उसने कहा मैडम किसी और का बच्चा मै क़्य़ॉ रखूँ इसॅक़ॆ पॆट मेँ तो चार महीने का बच्चा है मेरी शादी को तो सिर्फ एक महीना हुआ है .यह सुन कर मै भी असमँज़ॅस मेँ पड गयी .मैनेँ डाक्टॅर् की रिपोर्टॅ देखी चार महीने का अन्दाजा लिखा था मैने दोबारा से अल्ट्रासाऊँड क़रवाया ज़िसमे बच्चा 10 दिन का भी नही था पहले तो वह रखने को मान गया था .रिजल्ट क़ॆ बाद मुकर गया .इस हालात मे वह लडॅकी तो खडी की खडी रह गई .गरीब घर की लडकी थी.. माँ भाई की रोज़ी रोटी का सहारा थी लेकिन वापिस जाने को तैयार नही थी...शहर में रहकर ही उनकी मदद करना चाहती थी, साथ ही साथ पैसा कमा कर उस फरेबी पति पर मुकदमा दायर करना चाहती है. वह लडका नौकरी छोड कर चला गया .मुझे लगा कि मैँ क़ुछ थोडाबहुत तो कर पायी उस लडकी क़ॆ लिये .उस पर लगे आरोप को तो मिटा पाई .जिस शादी मे चार पांच आदमी खडे थे कोई आगे नही आया .अभी वह लडकी सोच नही पा रही है कि वापिस घर जाये या यहीँ रह क़र नौकरी करें और अपनी लडाई लडॆ लेकिन उससे कोई फयदा नजर नही आ रहा क्योकि जो मन से ही धोखेबाज हो वह कब तक उसका वफादार रह सकता है इससे अच्छा तो वह अपनी जिन्दगी बनाने मे लग जाये वह ज्यादा अच्छा है .दो तीन दिन मन बहुत बैचैन रहा .फिर सोचा पता नही एसी कितनी नारियाँ हालात क़ॆ हाथोँ मजबूर होकर घुटन भरी जिन्दगी जी रही हैँ .

Sunday, April 19, 2009

बिटिया के नाम

समय के हाथ मेँ हमारी जिन्दगी के लमहे है .उसी के अनुसार हमारे दुख-सुख जुडॆ हैँ .आज के दिन दो साल पहले मेरी बेटी की शादी हुई थी उस वक्त लग रहा था कि उसके बगैर जी नहीँ पाऊँगी .याद आती है .तीन दिन पहले ही मेरी मांनसिक दशा बिगड जाती है कि मुझे लगता है जब वह मेरे से दूर चली गई है तो कैसे उसॆ बधाई दूँ .लेकिन मन को समझाती हूँ क़ि यही जीवन है .आज के दिन मेरी बेटी ने अपनी निजी जिन्दगी शुरू की थी. उसे नई खुशी मिली , अच्छा जीवन साथी मिला. मेरी खुशी भी यही है .कि वह एक खुशहाल जिन्दगी जीये .दूसरे साल मे मन खाली खाली सा है लेकिन आँखो मे आंसू नहीँ हैँ .समय के साथ उसके बिना भी खुश रहना सीख रही हूँ .नई राहेँ नए दोस्त नया काम खोज रही हूँ पर अचानक यह आँख क्योँ भर आई...
शायद कुछ समय और लगेगा बिटिया तेरे बचपन की तसवीरेँ हर पल मेरे साथ रहतीँ हैँ क़ुछ मीठी कुछ खट्टी यादे तेरी माँ क़ॆ पास हैँ....कड़वी यादोँ को स्लेट सॆ मिटा कर मीठी यादोँ क़ॆ साथ बाकी की जिन्दगी काटना चाहती हूँ .ना चाहते हुए भी शायद इस दिन आँख भर ही आया करेगी .तुम जहाँ भी रहो खुश रहो तुम्हारी झोली खुशियोँ सॆ भरी रहे जो रिश्ते तुम्हारी कद्र करते हैँ उन्हेँ समेट क़र चलना जो कद्र नहीं क़रते उन्हेँ समय पर छोड़ दो और चेहरे पर हर वक्त मुस्कान रखो... जीने की डग़र आसान हो जायेगी चलिये यह तो मन की बात थी वास्तविक्ता को स्वीकार करके समयानुसार जिन्दगी की सीड़ियाँ चढ़ते जायेँ इसी मेँ जीने का मजा है .इंसान एक आशियाना बनाता है दो जीवन एक राह पर चलने की कसमे खाकर जीवन शुरू करते हैँ परमात्मा उनकी हर इच्छा पूरी करें मेरा और पापा का प्यार और आशीर्वाद हर वक्त तुम्हारे साथ है
19 अप्रैल 2009
ममी पापा स्नूपि..

Thursday, April 9, 2009

ज़िन्दगी के फलसफ़े



आज ज़िन्दगी के कुछ नए सफ़े पढ़ने निकली हूँ.... कौन जाने किस वक्त कोई अपना बनकर हमें अलग राह दिखा जाए .. ! सोचा न था कि ज़िन्दगी के इस मोड़ पर एक नया एहसास जागेगा और एक नई राह मिलेगी....!