Friday, July 10, 2009

हरियाणा के तौर तरीके

भी हरियाणा के तौर् तरीके
आज आपसे अपनी ही बात बता कर कुछ हंसाने की इच्छा हुई है आप लोग पढ् कर अपनी प्रतिक्रिया बताएँ दिल्ली मे पलीबढी और शादी करके हरियाणा के रोह्तक शहर मेँ पहुँची .अलग सा माहोल अलग से लोग लगे पहले तो पति. ने समझाया कि स्कूटर पर बैठ कर मुझे पकडना नही यह तुम्हारा दिल्ली शहर नही है जहाँ पति सामान पकडता है पत्नि खाली हाथ चलती है .यहाँ तो पति आगे आगे खाली हाथ चलता है पत्नि सिर पर बक्सा उठा कर चलती है लगा कि क्या इनको दिल्ली की लडक़ी से शादी करके अजीब लग रहा है. यहाँ तक तो चल गया .पति का घर एक़ बडी कोठी थी. उन दिनोँ बरतन कपडॆ धोने का रिवाज आंगन मे होता था .घर मे परदा सिस्टम् नही.था लेकिन रिश्तेदारोँ क़ॆ सामने तो करना ही था एक़ दिन सुबह बाहर आँग़ॅन मे बैठी कपडॆ धो रही थी. बाहर गेट पर सासूमाँ क़ॆ भाई आ गए घंटी बजाने की बजाए खांसने लगे कई बार खांसते गए अब मुझे खांसी तो सुनाई नही दी क्योँक़ि मेरा अपने काम मे ध्यान था गौव की बहू तो समझ जाती इसका मत्लब उन्होँने वापिस घर जाकर फोन किया कि ये तू कैसी बहु लाई है जो मुझे देख कर् अन्दर नही गई बाहर काम करती रही मैँ ही शर्मा कर वापिस आ गया हूँ माँज़ी ने शिकायत की तूने देखा क्योँ नही मेरा भाई आकर वापिस चला गया मुझे तो कुछ समझ आया नही कि वह मेरी मुँह दिखाई के लिये आया था तो मेरा मुँह दिख भी गया तो उसे शरम क्योँ आई मुँहदिखाई मेँ चेहरा देखे बगैर ही शगुन दे जाता .वह तो ससुरजी ने बात सम्भाली कि बहु कभी गौव मेँ रही नही तो उसे इन बातोँ का कैसे पता चलेगा धीरे धीरे सीख जायेगी .ऎक़ और रिवाज था जिसे मैँ समझ नही पाई सास ससुर् ननद ननदोई जेठ जिठानी के सामने पति. से बात नही करनी चाहिये पहली बार सबके सामने पति से कुछ कहा तो सब चुप हो गए पता नही चल रहा था कि क्या हुआ बाद मे बडी ननद ने बताया कि मुझे सबके सामने भाई से बात नही करनी थी. थोडॆ दिनोँ बाद गौव से एक़ बहु आई उसने बडॆ जोरशोर से पाँव दबाने शुरु किये माँज़ी बडॆ बडॆ आशीर्वाद देने लगी और साथ मे सुनाने लगी मेरी बहु तो पैर छूती है दबाती नही ये लो एक़ और गलती हो गई क्या भावनाओँ का कोइ महत्व नही कि पैर ना दबाने पर आशीर्वाद मेँ ही कटौती कर दी कुछ दिनोँ बाद गौव मे जाना हुआ घूँघट क़ी समस्या आ गई साडी पहन कर चल तो पडी गिरने का डर लगे ताईजी ने कहा बहु का आधा मुँह ढ्का है और पेट भी दिख रहा है इनकी तो अति हो गई पहली बात ये है कि जब इनका देवर रिश्ता कर रहा था तब क्योँ नही बोली कि शहर की लडॅकी लाने की क्या जरूरत है और अब आ गई तो उसको सीखने का समय तो दो फिर आई देवर की शादी मैँ सजधज कर बैठी. थी.कि एक़ ने कहा खाली बैठी हो झाडू लगा ले अब उनको क्या दर्द हुआ पता ही नही चला क्योँक़ि घर मेँ तो नौकरानी थी. बस खाली बडॆ होने का रौब डालना है और कुछ नही . मैँ और ननद मेहमानोँ क़ॆ ळिय़ॆ दो चूल्होँ पर् रोटियाँ बना रही थी. बडॆ नन्दोई और उनके बडॆ भाई अचानक से आ गए फिर वही खाँसी का दौर शुरु हो गया खाँस लो भई मुझे तो फिर पता नही चला मेरे साथ बडी ननद थी. अब उनकी बारी आ गई कि मेरे जेठ् आ कर चले गए ये बोली नही अब तक माँज़ी मुझे समझ चुकी थी. उन्होँने कहा कि उसकी बाकी अच्छाइयाँ भी देखो मैँ आज तक समझ नही पाई ये हरियाणा के आदमी बात भी करना चाहते हैँ और खाँस क़र् रह जाते हैँ गड्बड इनके दिमागोँ मे है या फेफडॉ मेँ इसॅक़ॆ बाद मेरे पति ने एक़ फैसला लिया उन्होँने अकेले जाना शुरु किया फिर पूछा वह क्योँ नही आई पति. ने कहा क्या करोगी वह तो बेशरम बहु है .इसके बाद घर के आदमियोँ ने कहा कि आगे से कोई कुछ नही बोलेगा तब जा कर मैँ थोडा सहज हो पाई फिर तो धीरे धीरे मैँ उनकी मनपसन्द बहु बन गई और अब उनकी अपनी बहुएँ आ गई हैँ तो और भी प्यार से मिलती हैँ क़्य़ॉकि आज की बहुएँ उनको वह जवाब दे देती हैँ ज़ॉ मै नही दे पाई लेकिन अच्छा सफर रहा और आशा करती हूँ क़ि आपको भी पढ्. कर अच्छा लगे.

6 comments:

  1. नमस्ते मम्मी,
    काफी दिन बाद आपका ब्लॉग पढ़ा, काफी कुछ जानने को मिला हरयाणा के बारें में. काफी दिलचस्प चेजें हैं. शायद हम लोग डेल्ही बॉम्बे में रहे हैं तो पढ़ के मुझे और चांदनी को बड़ी अजीब लग रही थी के अरे ऐसा भी होता है क्या. आजकल आपसे ज्यादा बात नहीं हो पाती , काफी काम रहता है, थोड़े दिनों में फ्री होके आचे से बातचित करेंगें .
    पापा को नमस्ते और स्नूपी को प्यार.
    आपका पुत्र
    विवेक और चांदनी

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  2. बहुत कुछ जानने मिला..हर प्रदेश की परंपराये हैं.

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  3. देर आए दुरुस्त आए... शुक्र है आपने एक नई पोस्ट एक अनूठे अनुभव के साथ लिखी...इसी तरह से लिखती रहिए... नए नए रीति रिवाज़ो के बारे मे जानना हमेशा अच्छा लगता है ...

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  4. हम भी ठहरें हरियाणा के तो शीर्षक देखकर दोडे आ गए। एक अच्छी पोस्ट।

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  5. हरियाणा तो काफी आगे रहा है प्रगति के दौर में और रही बात रस्मों रिवाजों कि तो आपने जो उस समय किया देखा वो अब यहाँ हो रहा है , लोग और परिवार बदल रहे हैं

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  6. "स्कूटर पर बैठ कर मुझे पकडना नही यह तुम्हारा दिल्ली शहर नही है"
    काफी अच्छा संस्मरण. बहुत कुछ जानने को मिला.

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