Tuesday, July 14, 2009

बालबुद्दि

बालबुद्दि
कुछ साल पहले की बात है जब मै स्कूल मे पढाती थी. गरमी की छुटियोँ क़ॆ बाद स्कूल शुरु हुए थे प्राइमरी क्लास के छात्रोँ क़ी बात है वैसे ही किसी का मन नही लगता एक़दम से और कुछ बच्चे तो बिल्कूल ही रूचि नही लेते उन्हीँ मे से मनोज और अनिल थे जिनको अधिक्तर डाँट पडती थी. एक़ दिन उनकी शिकायत दूसरे बच्चे ने की कि मैडम ये दोनोँ आप को गन्दा बोल रहे हैँ तो मैने उन्हेँ पूछा क्या बोल रहे हैँ वह बोला मैडम.....भूतनी .मैने उन्हे बुलाया पूछने पर मनोज ने बताया कि मैडम अनिल कह रहा था कि उसने ग़ाँव मेँ पेडॉ पर भूतनी देखी और मुझे तो यह् मैडम भी भूतनी लगती है लेकिन मैने कहा कि आप भूतनी नही हैँ क़्य़ॉकि भूतनी तो पेडॉ पर रहती है और एक़ पेड सॆ दूसरे पेड पर उड क़र जाती हैँ और मैडम तो मोटी होने के कारण उड नही सकती. अनिल से पूछा तो बोला मैडम पता नही कैसे जबान फिसल गई गाँव मेँ मम्मी कहती थी,अन्धेरे मे बाहर मत जाओ पेडॉ पर भूतनी रहती हैँ ज़ॉ बच्चोँ क़ॉ खा जाती हैँ आप ने मुझे कल डाँटा था तो इसलिये बोल दिया उसकी इस बात को सुनकर मुस्कराने के सिवाय मैँ क़ुछ ना कह सकी हाँ इतना जरूर किया कि उसे आगे की सीट पर बुला लिया और पढने मे तेज बच्चे के साथ बिठा दिया; ध्यान रखती कि वह अच्छी तरह से पढे .बालबुद्दि देखिये बच्चे की कि उसने मुझे एक़ भूतनी से इस लिये जोडा कि उसको मैँ बहुत बुरी लगती थी, जब डाँटती थी, क्योँक़ि उसका पढने मे मन नही था उसकी इस भोली सी सोच के आगे कुछ भी ना बोल पाई आप मेरी जगह होते तो क्या करते .किसी बडॆ क़ॆ मुँह से यह शब्द सुन कर गुस्सा आता लेकिन बच्चे तो बच्चे ही हैँ

9 comments:

  1. मुस्कराने के सिवाय क्या करते-बच्चे तो बच्चे ही हैं.

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  2. जी यही तो बच्चपना है। मुस्कराते रहीए।
    आभार/ शुभकामनाओ सहित
    हे प्रभु यह तेरापन्थ
    मुम्बई टाईगत

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  3. aapki samajhadari ki daad deti hoon ,aachha laga padhakar .

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  4. बच्चे मन के सच्चे,
    सारे जग की आँख के तारे,
    ये वो नन्हें फूल हैं जो,
    भगवान को लगते प्यारे..
    बस ये गाईये....और क्या...

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  5. दरअसल हमारा खुद का व्यवहार ही बच्चों के मन में ऐसी बातों की उपज होता है ...मंदबुद्धि बच्चों पर विशेष दबाव उनमें आक्रोश भर देता है ....आपने उसे आगे बैठा सही किया .....!!

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  6. कालजयी सस्मरण है anil ayaan

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